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कविता

भोर का तारा

घनश्याम कुमार देवांश


भोर का तारा
पूरी रात सब साथ रहे
सुबह वह छूट गया अकेला
आसमान के एक छोर पर
मैंने उसे तुम्हारी आखिरी उदास आँखों की तरह देखा
लाल और खामोश


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